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आतिशबाजी से जहरीली हुई हवा, लोगों को सांस लेने में दिक्कत
दीपावली का त्यौहार रोशनी और खुशियों का प्रतीक माना जाता है, लेकिन अब यह त्योहार कई शहरों के लिए स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। दीपावली की रात जब आसमान में रंग-बिरंगी आतिशबाजी के दृश्य दिखाई दिए, उसी के साथ हवा में फैल गया धुआं और जहरीले कण।
दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, पटना और जयपुर जैसे शहरों में दीपावली की रात और उसके अगले दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) “गंभीर” श्रेणी में पहुंच गया। कुछ इलाकों में तो यह 450 से ऊपर दर्ज किया गया, जो सीधे-सीधे खतरनाक स्तर माना जाता है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, दीपावली के बाद हवा में PM 2.5 और PM 10 कणों की मात्रा सामान्य से 7 से 10 गुना तक बढ़ गई। इन सूक्ष्म कणों का आकार इतना छोटा होता है कि वे सीधे फेफड़ों में प्रवेश कर रक्त प्रवाह तक पहुंच जाते हैं। यही वजह है कि लोग दीपावली की रात और अगले दिन सांस लेने में भारीपन, खांसी, गले में जलन और सीने में दर्द जैसी शिकायतें करने लगे।
दिल्ली की निवासी सुनीता वर्मा ने बताया, “रात में आतिशबाजी के बाद सुबह जैसे ही उठे तो घर के अंदर तक धुआं घुस आया था। आंखें जल रही थीं और बच्चों को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।”
यह सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं है; हजारों लोग इस समय ऐसी ही परेशानी झेल रहे हैं।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर इस हद तक बढ़ गया कि कई स्कूलों ने बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कक्षाएं ऑनलाइन मोड में कर दीं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या केवल दीपावली की रात तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसके बाद कई दिनों तक हवा में जहरीले तत्व बने रहते हैं।
अस्पतालों में बढ़ी मरीजों की भीड़, सांस और आंखों की शिकायतें ज्यादा
दीपावली के दूसरे दिन सुबह से ही देशभर के सरकारी और निजी अस्पतालों में मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। डॉक्टरों के अनुसार, सबसे अधिक शिकायतें सांस लेने में तकलीफ, गले में जलन, आंखों में पानी आना और खांसी बढ़ने की आ रही हैं।
लखनऊ के KGMU, दिल्ली के AIIMS, और पटना मेडिकल कॉलेज जैसे अस्पतालों में एक ही दिन में सांस से संबंधित मरीजों की संख्या सामान्य दिनों की तुलना में लगभग दो गुना हो गई।
KGMU के श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक श्रीवास्तव बताते हैं,
“दीपावली के बाद सबसे ज्यादा असर अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के मरीजों पर पड़ता है। हवा में मौजूद धूल और धुएं के सूक्ष्म कण फेफड़ों के अंदर जाकर ऑक्सीजन की आपूर्ति को बाधित करते हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है।"
इसके साथ ही नेत्र रोग विभागों में भी मरीजों की संख्या बढ़ी है। आंखों में जलन, लालिमा, और सूजन की समस्या से जूझ रहे लोग डॉक्टरों के पास जा रहे हैं।
डॉ. रुचि अग्रवाल, नेत्र विशेषज्ञ, कहती हैं —
“पटाखों से निकलने वाला धुआं नाइट्रेट और सल्फर यौगिकों से भरा होता है। ये तत्व आंखों की नमी को खत्म कर देते हैं, जिससे सूजन और जलन बढ़ जाती है। कई मरीजों को कॉर्निया में इंफेक्शन की शुरुआत भी देखी गई है।”
गले में खराश और खांसी की शिकायतें भी आम हो गई हैं। ENT विशेषज्ञों के अनुसार, पटाखों में इस्तेमाल होने वाले धातु तत्व जैसे मैग्नीशियम, एल्युमिनियम और कॉपर, सांस के साथ शरीर में पहुंचकर गले की झिल्ली को नुकसान पहुंचाते हैं।
बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह स्थिति और भी खतरनाक है क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है।

डॉक्टरों की चेतावनी और प्रदूषण से बचाव के उपाय
डॉक्टरों का कहना है कि दीपावली के बाद के ये कुछ दिन स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद संवेदनशील होते हैं। प्रदूषण के बढ़े हुए स्तर का असर सिर्फ फेफड़ों पर नहीं, बल्कि हृदय और मस्तिष्क पर भी पड़ता है।
AIIMS के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अनिल भारद्वाज बताते हैं कि हवा में मौजूद विषैले तत्व रक्त वाहिकाओं में सूजन पैदा करते हैं, जिससे हृदयाघात (Heart Attack) और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
1. मास्क का प्रयोग करें
बाहर निकलते समय हमेशा N95 मास्क का उपयोग करें। यह छोटे प्रदूषक कणों (PM2.5) से भी बचाव करता है। सामान्य कपड़े का मास्क इस स्तर का बचाव नहीं कर पाता।
2. सुबह और रात में टहलने से बचें
प्रदूषण का स्तर रात और सुबह के समय सबसे ज्यादा होता है, इसलिए इन घंटों में बाहर निकलने से बचना चाहिए।
3. घर के अंदर वायु शुद्ध रखने के उपाय
एलोवेरा, पीस लिली, स्नेक प्लांट जैसे इनडोर पौधे घर के अंदर की हवा को शुद्ध करने में मदद करते हैं। इसके अलावा एयर प्यूरीफायर का उपयोग भी किया जा सकता है।
4. आहार में सुधार करें
फेफड़ों की सेहत के लिए विटामिन C, E और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर भोजन करें — जैसे नींबू, आंवला, ग्रीन टी, पालक और अदरक। ये शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
5. बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें
जिन्हें पहले से अस्थमा, COPD या दिल की बीमारी है, उन्हें डॉक्टर की सलाह से इनहेलर या दवाएं पहले से तैयार रखनी चाहिए। बच्चों को प्रदूषित वातावरण से बचाकर घर के अंदर रखना चाहिए।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की स्थिति से बचने का एकमात्र तरीका है — “हरित दीपावली” (Green Diwali) का संकल्प लेना। यानी बिना आतिशबाजी के, पर्यावरण और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए त्योहार मनाना।
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