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1. ट्रंप की टैरिफ नीति का उद्देश्य
डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का मुख्य उद्देश्य है अमेरिकी उद्योगों की सुरक्षा और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना। इस सोच के तहत वे विदेशी वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाते हैं ताकि आयातित सामान महंगा हो जाए और घरेलू उत्पादों को प्राथमिकता मिले।
ट्रंप मानते हैं कि अमेरिका को व्यापार घाटा भारत और अन्य देशों की नीतियों के कारण हो रहा है। इसलिए वे आयात शुल्क को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं।
इसके पीछे एक राजनैतिक सोच भी है, जिससे वे अपने समर्थकों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे अमेरिकी नौकरियों और उद्योगों के लिए लड़ रहे हैं।
पिछले कार्यकाल में भी ट्रंप ने कई देशों पर इसी प्रकार के टैरिफ लगाए थे, जिनमें चीन सबसे बड़ा उदाहरण है। अब भारत पर यह नीति लागू कर एक बार फिर उन्होंने विवादित कदम उठाया है।
2. भारत पर लगाए गए टैरिफ का दायरा
ट्रंप द्वारा घोषित टैरिफ नीति के तहत भारत से अमेरिका में निर्यात होने वाले उत्पादों में विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं, फार्मास्युटिकल्स, स्टील उत्पाद, ऑटो पार्ट्स और टेक्सटाइल शामिल हैं।
इन सभी उत्पादों पर 50% तक आयात शुल्क लगाया जाएगा, जिससे भारत के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाएगा। इससे छोटे और मध्यम स्तर के निर्यातकों को ज्यादा नुकसान होगा।
पहले भारत पर 25% शुल्क लागू था, लेकिन अब उसे दोगुना कर दिया गया है। इससे भारतीय उद्योगों को अमेरिका के मुकाबले अन्य बाजारों की ओर देखना पड़ सकता है।
इन टैरिफों का असर केवल उत्पादों की बिक्री पर नहीं पड़ेगा, बल्कि दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।

3. भारत को होने वाला संभावित नुकसान
भारत को सबसे ज्यादा नुकसान टेक्सटाइल, दवा और ऑटो पार्ट्स उद्योग में हो सकता है, जो अमेरिका में बड़े स्तर पर उत्पाद भेजते हैं। इन क्षेत्रों में लाखों लोग रोजगार में लगे हैं।
50% टैरिफ लगने से इन उत्पादों की कीमतें अमेरिका में बहुत बढ़ जाएंगी, जिससे उनकी मांग घटेगी और निर्यात में भारी गिरावट संभव है।
इससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी असर पड़ सकता है क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
लंबे समय तक ऐसा टैरिफ लागू रहने से भारत की आर्थिक वृद्धि दर पर भी असर पड़ सकता है और छोटे निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा क्षमता कम हो सकती है।
4. वैश्विक व्यापार पर असर
भारत पर टैरिफ लगाने का ट्रंप का फैसला सिर्फ द्विपक्षीय मसला नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक व्यापार व्यवस्था को प्रभावित करेगा।
WTO जैसी संस्थाएं ऐसे टैरिफ के खिलाफ पहले भी बयान दे चुकी हैं और इस बार भी भारत इसकी शिकायत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कर सकता है।
चीन के साथ पहले से ही चल रही व्यापार जंग में अमेरिका ने वैश्विक सप्लाई चेन को अस्थिर किया है, अब भारत पर यह निर्णय वैश्विक निवेशकों की सोच को और प्रभावित करेगा।
इसके परिणामस्वरूप अन्य विकासशील देश भी आशंकित हो सकते हैं और वैश्विक स्तर पर व्यापार संतुलन और सहयोग में दरार आ सकती है।
5. भारत की प्रतिक्रिया और आगे की रणनीति
भारत सरकार ने ट्रंप के इस फैसले को अनुचित और एकतरफा करार दिया है। विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय ने इसे WTO के नियमों के खिलाफ बताया है।
भारत का अगला कदम यही होगा कि वह अमेरिका के साथ वार्ता के माध्यम से इस मसले को सुलझाने की कोशिश करे। साथ ही, यदि बात नहीं बनी तो WTO में केस दायर करने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
भारत अब वैकल्पिक निर्यात बाजारों की तलाश में जुटेगा ताकि अमेरिकी निर्भरता को कम किया जा सके। ASEAN, यूरोप और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में व्यापार विस्तार की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
सरकार का प्रयास है कि छोटे और मझोले उद्योगों को सब्सिडी और प्रोत्साहन देकर उन्हें नए बाजारों में खड़ा किया जाए।