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जब कोई पूछता है कि पैसों की असली शिक्षा कहाँ से मिलती है, तो स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी का नाम लिया जाता है। लेकिन क्या ये संस्थाएं वाकई हमें पैसे की समझ देती हैं? रॉबर्ट कियोसाकी की प्रसिद्ध पुस्तक 'Rich Dad Poor Dad' इस सवाल पर गहराई से विचार करती है और एक नए नजरिए से पैसों के बारे में सोचने को मजबूर करती है।

रॉबर्ट का मानना है कि अमीरी केवल आय से नहीं आती, बल्कि सोच से आती है। उनकी इस किताब में दो पिता हैं – एक उनके अपने जैविक पिता जिन्हें वे 'Poor Dad' कहते हैं, और दूसरे उनके दोस्त के पिता, जो बेहद अमीर थे – 'Rich Dad'। ये दोनों पिता जीवन के हर मोड़ पर एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत सलाह देते हैं।

Poor Dad का विश्वास था कि "पढ़ाई करो, नौकरी पाओ, और जीवन भर मेहनत करो"। वहीं Rich Dad कहते थे, "पढ़ाई करो, लेकिन पैसा तुम्हारे लिए कैसे काम करे – यह सीखो"। यही दोनों सोचों का मूल अंतर है। अमीरी और गरीबी की इस मानसिकता को रॉबर्ट ने अपने अनुभवों के जरिए किताब में खूबसूरती से पिरोया है।

पैसों की शिक्षा स्कूल में नहीं मिलती

कियोसाकी कहते हैं कि हमारे स्कूलों का ध्यान अकादमिक ज्ञान पर होता है, न कि फाइनेंशियल एजुकेशन पर। नतीजा यह होता है कि बच्चे अच्छे ग्रेड तो लाते हैं, लेकिन पैसे को संभालना, निवेश करना, टैक्स मैनेजमेंट या संपत्ति कैसे बनाएं – ये सब नहीं सीखते।

Rich Dad Poor Dad हमें यह समझाने की कोशिश करती है कि अगर हम पैसे की शिक्षा समय रहते नहीं लेते, तो पूरी उम्र हम केवल पैसे कमाने के लिए ही काम करते रह जाएंगे। इसलिए यह जरूरी है कि हम पैसे की समझ स्कूल के बाहर से ही सही, लेकिन जरूर हासिल करें।

एसेट और लायबिलिटी का फर्क समझना

इस किताब की सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा यह है कि हमें एसेट (संपत्ति) और लायबिलिटी (दायित्व) में फर्क करना आना चाहिए। Rich Dad कहते हैं – "अमीर लोग एसेट्स खरीदते हैं, गरीब और मिडल क्लास लोग लायबिलिटीज खरीदते हैं जिन्हें वे एसेट्स समझते हैं।"

उदाहरण के लिए, अगर आपने एक कार खरीदी है और वह सिर्फ आपकी जेब से पैसे निकाल रही है, तो वह एसेट नहीं, लायबिलिटी है। लेकिन अगर आपने एक प्रॉपर्टी खरीदी है जो आपको हर महीने किराया दे रही है, तो वह एसेट है।

एसेट्स ही असली अमीरी की नींव हैं। और यह सोच विकसित करना कि कौन सी चीज़ एसेट है और कौन सी नहीं, यही इस किताब की सबसे बड़ी सीख है।

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डर और लालच पर नियंत्रण

रॉबर्ट लिखते हैं कि आम आदमी डर और लालच के बीच फंसा रहता है। नौकरी छूटने का डर और ज्यादा कमाने की लालसा उसे अपने कंफर्ट जोन से बाहर नहीं निकलने देती। यही वजह है कि लोग सुरक्षित नौकरी पर निर्भर रहते हैं, लेकिन निवेश नहीं करते, रिस्क नहीं लेते।

Rich Dad Poor Dad बताती है कि अगर आप आर्थिक स्वतंत्रता पाना चाहते हैं, तो इन भावनाओं पर काबू पाकर नए अवसरों को अपनाना होगा। रिस्क से डरना नहीं, उसे समझकर संभालना होगा।

पैसे के लिए काम मत करो – पैसे को अपने लिए काम करने दो

Poor Dad का मानना था – "ज्यादा काम करो, ज्यादा कमाओ"। जबकि Rich Dad कहते थे – "ज्यादा स्मार्ट बनो, सिस्टम बनाओ ताकि पैसा खुद-ब-खुद आए।"

इसका मतलब है कि नौकरी करते हुए भी ऐसे स्रोत तैयार किए जाएं जो पैसिव इनकम दें – जैसे कि निवेश, रियल एस्टेट, स्टॉक्स, या बिजनेस। अमीरी की ओर यह पहला कदम होता है कि आप अपनी कमाई का हिस्सा एसेट्स में लगाना शुरू करें।

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निवेश की ताकत को समझना

Rich Dad Poor Dad केवल पैसे कमाने की बात नहीं करता, बल्कि उसे बढ़ाने की भी बात करता है। रॉबर्ट कहते हैं कि एक समझदार निवेशक वही होता है जो जोखिम को समझता है और उसका मैनेजमेंट करता है। बिना सोचे समझे निवेश करना गलत है, लेकिन डर के मारे बिल्कुल न करना भी उतना ही नुकसानदायक है।

इस किताब के अनुसार, निवेश की शुरुआत छोटे-छोटे कदमों से होनी चाहिए – SIP, म्यूचुअल फंड्स, स्टॉक्स, रियल एस्टेट जैसे विकल्पों को सीखना और समझदारी से अपनाना जरूरी है।

पढ़ाई जरूरी है – लेकिन किस चीज की?

रॉबर्ट यह नहीं कहते कि पढ़ाई बेकार है, बल्कि वे कहते हैं कि सही विषय की पढ़ाई जरूरी है। अकाउंटिंग, इन्वेस्टमेंट, टैक्स प्लानिंग, एंटरप्रेन्योरशिप – ये सब वो विषय हैं जो किसी को अमीर बना सकते हैं। Rich Dad Poor Dad एक ऐसे सिस्टम की कमी को उजागर करता है जो पैसे के लिए नहीं, बल्कि पैसे से कैसे जिएं – यह नहीं सिखाता।

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भारत में Rich Dad Poor Dad क्यों जरूरी है?

भारत में अधिकतर लोग अभी भी सोचते हैं कि सरकारी नौकरी या बड़ी कंपनी की नौकरी ही सफलता है। लेकिन यह किताब इस धारणा को चुनौती देती है और बताती है कि असली आर्थिक आज़ादी निवेश, संपत्ति और उद्यमिता से आती है।

आज के युवाओं के लिए यह किताब एक अनिवार्य पढ़ाई होनी चाहिए ताकि वे अपनी आर्थिक स्वतंत्रता के बारे में समय रहते सोच सकें। Rich Dad Poor Dad केवल एक किताब नहीं, बल्कि एक सोच है जो भारत जैसे देश में आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है।

Rich Dad Poor Dad एक ऐसी किताब है जो हर व्यक्ति को कम से कम एक बार जरूर पढ़नी चाहिए। यह न केवल अमीरी और गरीबी की सोच का फर्क बताती है, बल्कि जीवन के हर पहलू में पैसे की भूमिका को भी उजागर करती है। अगर आप आर्थिक स्वतंत्रता पाना चाहते हैं, तो यह किताब आपके लिए पहला कदम हो सकती है।

रॉबर्ट कहते हैं – "Change your mindset, and your money will follow."

Saumya Tiwari
Saumya Tiwari
Content Writer & News Reporter

I’m a passionate writer who loves exploring ideas, sharing stories, and connecting with readers through meaningful content.I’m dedicated to sharing insights and stories that make readers think, feel, and discover something new.