सुप्रीम कोर्ट का सोशल मीडिया और यूट्यूब इन्फ्लुएंसर्स पर बड़ा फैसला: फ्री स्पीच की सीमा तय, नियम बने सख्त

सोशल मीडिया में अभिव्यक्ति का महत्व और चुनौती

आज सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स, जैसे YouTube, Instagram, TikTok (भारत में बैन), Facebook आदि, जनता तक जानकारी पहुँचाने, मनोरंजन करने और सामाजिक बोध जगाने के मुख्य जरिये हैं। यूट्यूब पर लाखों क्रिएटर्स रोजाना कंटेंट अपलोड करते हैं, जिससे उन्हें व्यूज के आधार पर पैसा मिलता है।

फिर भी, इस प्लेटफॉर्म पर अफवाहें, अपमानजनक सामग्री, भड़काऊ भाषण और संवेदनशील विषयों को लेकर विवाद काफी बढ़ गए हैं। ऐसे में ये सवाल उठता है कि डिजिटल कंटेंट पर किस हद तक अभिव्यक्ति की आज़ादी लागू होती है?


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: कॉमर्शियल स्पीच और फ्री स्पीच में अंतर

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जो लोग सोशल मीडिया के माध्यम से मुद्रीकरण करते हैं यानी कंटेंट से आर्थिक लाभ प्राप्त करते हैं, उनकी अभिव्यक्ति को पारंपरिक फ्री स्पीच से अलग समझा जाएगा। इसे 'कमर्शियल स्पीच' माना गया है, जो संवैधानिक अधिकारों के तहत पूर्ण प्रतिबंधों का अधीन है।

इसका मतलब है कि अगर यूट्यूबर या इन्फ्लुएंसर किसी व्यक्ति, समुदाय या वर्ग के प्रति अपमानजनक या भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल करता है, तो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मशहूर कॉमेडियंस और डिजिटल इन्फ्लुएंसर्स को भी निर्देश दिया है कि वे सार्वजनिक रूप से माफी मांगे और आगे के कंटेंट के लिए जिम्मेदारी निभाएं।


मुख्य मामले और आदेश

यह मामला तब शुरू हुआ जब कुछ कॉमेडियंस (समय रैना, विपुल गोयल आदि) पर दिव्यांगों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियों के आरोप लगे। कोर्ट ने अभी तक यूट्यूब पर सार्वजनिक माफी मांगने और अफिडेविट देने का आदेश दिया जिसमें बताया जाए कि वे भविष्य में ऐसे कंटेंट नहीं बनाएंगे।

इसके साथ ही सूचना और प्रसारण मंत्रालय को निर्देश दिया गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के कंटेंट के लिए स्पष्ट नियम बनाए जाएं। गाइडलाइंस में कंटेंट मॉडरेशन, शिकायत निवारण और वैधता मूल्यांकन शामिल होंगे।


सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया कंपनियों पर भी ज़ोर दिया है कि वे भारत में अपनी नीति कड़ी करें। वे न केवल सामग्री को मॉडरेट करें बल्कि नियमों का उल्लंघन करने वालों को प्लेटफॉर्म से प्रतिबंधित करें।

यूट्यूब, फेसबुक जैसी कंपनियों को सरकार की डिजिटल नीति का पालन करना होगा और स्थानीय कानूनों के हिसाब से सामग्री की समीक्षा करनी होगी। प्लेटफॉर्मों पर वैरिफाइड कंटेंट क्रिएटर्स को प्रोत्साहित किया जाएगा।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संयम का संतुलन

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत का मौलिक अधिकार है, लेकिन इसे जिम्मेदारी और सामाजिक सौहार्द्र के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए। किसी के अधिकारों का उल्लंघन, झूठी जानकारी फैलाना और आपत्तिजनक भाषण लोकतंत्र के लिए खतरा हैं।

इसलिए, डिजिटल मीडिया कंटेंट में संयम प्रतिबंधित नहीं बल्कि आवश्यक है ताकि समाज में शांति और सम्मान बना रहे।


विशेषज्ञ और जनता की प्रतिक्रिया

कानूनी विशेषज्ञ इस निर्णय को डिजिटल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक आवश्यक कदम मानते हैं। उन्हें लगता है कि यह कंटेंट क्रिएटर्स के लिए जागरूकता और जिम्मेदारी बढ़ाएगा।

हालांकि, कुछ नागरिकों का मानना है कि इससे ऑनलाइन प्रदर्शनों और बोलचाल में कुछ हद तक सेंसरशिप और भय भी फैल सकता है। वे आशंका जताते हैं कि गलत व्याख्या से अभिव्यक्ति के अधिकारों को कमजोर किया जा सकता है।


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Kuldeep Pandey
Kuldeep Pandey
Content Writer & News Reporter

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