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भारतीय सेना को अमेठी से मिली हजारों नई एके राइफलें जो बदल देंगी सीमाओं की तस्वीर
भारतीय सेना को हाल ही में उत्तर प्रदेश के अमेठी में स्थित इंडो रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड से हजारों नई एके असॉल्ट राइफलों की महत्वपूर्ण खेप प्राप्त हुई है। यह डिलीवरी देश की रक्षा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है जो मेक इन इंडिया पहल की सफलता को प्रदर्शित करता है।
अमेठी के कोरवा में स्थापित यह संयुक्त उद्यम अब तक भारतीय सशस्त्र बलों को पचास हजार से अधिक राइफलें सप्लाई कर चुका है। नवीनतम खेप को डायरेक्टरेट जनरल ऑफ क्वालिटी एश्योरेंस की टीम द्वारा कठोर परीक्षण और गुणवत्ता जांच के बाद सेना को सौंपा गया है। उल्लेखनीय बात यह है कि इन राइफलों के संबंध में अब तक एक भी शिकायत नहीं मिली है जो इनकी उत्कृष्ट गुणवत्ता और विश्वसनीयता को दर्शाता है।
भारत और रूस की साझेदारी से बनी आधुनिक राइफल
भारत और रूस के बीच जुलाई दो हजार इक्कीस में पांच हजार दो सौ करोड़ रुपये का एक महत्वपूर्ण अनुबंध हुआ था। इस अनुबंध के तहत छह लाख से अधिक एके राइफलों का निर्माण भारत में किया जाना था। यह संयुक्त उद्यम भारत और रूस की दीर्घकालिक रक्षा साझेदारी का प्रतीक है जिसमें भारतीय पक्ष से एडवांस्ड वेपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड और मुनिशंस इंडिया लिमिटेड तथा रूसी पक्ष से रोसोबोरोनएक्सपोर्ट और कलाश्निकोव कंसर्न शामिल हैं।
इंडो रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक मेजर जनरल एस के शर्मा ने बताया कि कंपनी ने पिछले अठारह महीनों में लगभग अड़तालीस हजार राइफलें सेना को सप्लाई कर दी हैं। आने वाले समय में और भी अधिक राइफलों की डिलीवरी की योजना है जो सेना की आवश्यकताओं को पूरा करेगी।
स्वदेशीकरण की ओर तेज प्रगति
वर्तमान में इन राइफलों में पचास प्रतिशत स्वदेशीकरण हो चुका है और यह प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। रूस से सौ प्रतिशत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पूर्ण हो चुका है जो भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। दिसंबर दो हजार पच्चीस तक पूर्ण रूप से स्वदेशी एके राइफल का निर्माण शुरू हो जाएगा और उसके बाद इन राइफलों को शेर नाम से जाना जाएगा।
अगले साल से अमेठी की फैक्ट्री में हर महीने बारह हजार राइफलों का निर्माण होगा यानी हर सौ सेकंड में एक राइफल तैयार होगी। इस तरह सालाना लगभग डेढ़ लाख राइफलों का उत्पादन किया जा सकेगा। कंपनी ने छह लाख से अधिक राइफलों का पूरा आर्डर दिसंबर दो हजार तीस तक पूरा करने की योजना बनाई है जो मूल समय सीमा से बाईस महीने पहले है।
आधुनिक तकनीक से लैस शक्तिशाली हथियार
यह राइफल एक आधुनिक गैस ऑपरेटेड असॉल्ट राइफल है जो सात दशमलव बासठ गुणा उनतालीस मिलीमीटर कार्ट्रिज का उपयोग करती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी हल्की वजन और शक्तिशाली फायरिंग क्षमता है। यह राइफल केवल साढ़े तीन किलोग्राम वजन की है लेकिन एक मिनट में सात सौ राउंड फायर कर सकती है जो इसे अत्यंत प्रभावी बनाता है।
इसकी प्रभावी फायरिंग रेंज चार सौ से आठ सौ मीटर के बीच है जो विभिन्न प्रकार की युद्ध परिस्थितियों में उपयोगी है। राइफल तीस राउंड की डिटेचेबल बॉक्स मैगजीन से लैस है हालांकि अधिक क्षमता के लिए पचास राउंड की मैगजीन का भी उपयोग किया जा सकता है। इसकी स्थायित्व क्षमता पंद्रह हजार राउंड है लेकिन परीक्षण में कुछ राइफलों ने चालीस हजार राउंड तक फायर करने के बाद भी उत्कृष्ट प्रदर्शन दिखाया है।
राइफल पिकाटिनी रेल्स से लैस है जो विभिन्न ऑप्टिकल साइटिंग सिस्टम नाइट विजन डिवाइस और अन्य सामरिक उपकरणों को जोड़ने की सुविधा देती है। इसमें एडजस्टेबल आयरन साइट्स भी हैं और कोलैप्सिबल स्टॉक सैनिकों के लिए बेहतर मोबिलिटी प्रदान करता है। ये आधुनिक फीचर्स इसे काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन और उच्च ऊंचाई वाले युद्ध के लिए आदर्श बनाते हैं।
पुरानी इंसास राइफलों से बेहतर विकल्प
भारतीय सेना अपनी पुरानी इंसास यानी इंडियन नेशनल स्मॉल आर्म्स सिस्टम राइफलों को इन नई राइफलों से बदल रही है। इंसास राइफलों में कई समस्याएं थीं जिनमें बंदूक जाम होना फायरिंग मोड में अचानक परिवर्तन ठंडे तापमान में मैगजीन का टूटना और स्टॉपिंग पावर की कमी शामिल थी। कारगिल युद्ध के दौरान इन समस्याओं ने सैनिकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।
इंसास पांच दशमलव छप्पन मिलीमीटर कार्ट्रिज का उपयोग करती थी जबकि नई राइफल अधिक शक्तिशाली सात दशमलव बासठ मिलीमीटर कार्ट्रिज का उपयोग करती है जो बेहतर स्टॉपिंग पावर प्रदान करता है। नई राइफल की बेहतर एर्गोनॉमिक्स अधिक सटीकता और अनुकूलन क्षमता इसे विभिन्न युद्ध परिस्थितियों के लिए आदर्श बनाती है।
उत्पादन सुविधा और रोजगार के अवसर
इंडो रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड अमेठी में साढ़े आठ एकड़ के परिसर में संचालित होता है। वर्तमान में यह कंपनी ढाई सौ से अधिक कर्मचारियों को रोजगार दे रही है जिसमें स्थायी रूसी विशेषज्ञ भी शामिल हैं। भविष्य में कंपनी इस संख्या को पांच सौ से अधिक तक बढ़ाने की योजना बना रही है जिसमें नब्बे प्रतिशत स्थानीय लोग होंगे।
यह परियोजना उत्तर प्रदेश रक्षा गलियारे के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में काम कर रही है। जब यह संयुक्त उद्यम पूर्ण रूप से परिचालन में आ जाएगा तो यह सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यमों से कई घटकों और सेवाओं की खरीद करेगा। इससे क्षेत्र में निवेश और रोजगार के अवसर बढ़ने की उम्मीद है।
फैक्ट्री में अत्याधुनिक फायरिंग रेंज और क्वालिटी कंट्रोल लैब भी स्थापित है। प्रत्येक राइफल सौ बीस प्रक्रियाओं से गुजरती है और इसमें लगभग पचास मुख्य घटक और एक सौ अस्सी उप पुर्जे होते हैं। हर सामग्री के लिए अब भारत में वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध हो गए हैं जो पूर्ण स्वदेशीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सीमाओं पर मजबूती का प्रतीक
ये आधुनिक राइफलें लाइन ऑफ कंट्रोल और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल सहित उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर तैनात सैनिकों की प्राथमिक असॉल्ट राइफल बनेंगी। चीन के साथ एलएसी और पाकिस्तान से सीमापार गतिविधियों के दोहरे खतरों को देखते हुए इस उन्नयन को तेज किया गया है।
पहली बार भारत में निर्मित एके राइफलों का उपयोग लाइन ऑफ कंट्रोल पर वास्तविक युद्ध अभियान में किया गया है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इन राइफलों ने अपनी परिचालन क्षमता का प्रदर्शन किया जो भारतीय रक्षा आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उरी पूंछ राजौरी और तंगधार जैसे क्षेत्रों में तैनात इकाइयों ने इन राइफलों से प्रभावी ढंग से जवाबी कार्रवाई और रक्षात्मक अभियान चलाए हैं।
निर्यात की संभावनाएं और वैश्विक पहचान
निर्यात की संभावनाएं भी उज्ज्वल हैं। अफ्रीकी और मध्य पूर्वी देशों से इन राइफलों के लिए पूछताछ आ रही है। इंडो रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद मित्र राष्ट्रों को निर्यात करने की योजना बना रहा है। तैयारियां चल रही हैं और पहला आयातक देश जल्द ही अंतिम रूप दिया जाएगा।
यह परियोजना भारत को एक वैश्विक रक्षा आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित करने में मदद करेगी। भारत का रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष दो हजार तेईस चौबीस में एक लाख सत्ताईस हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है जो दो हजार चौदह पंद्रह से एक सौ चौहत्तर प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। रक्षा निर्यात भी रिकॉर्ड इक्कीस हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है जो एक दशक में तीस गुना बढ़ा है।
आत्मनिर्भर भारत की महत्वाकांक्षी योजना
यह परियोजना आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल का एक प्रमुख उदाहरण है। मेजर जनरल शर्मा ने इसे ब्रह्मोस के छोटे भाई के रूप में वर्णित किया है जो भारत रूस रक्षा सहयोग की एक और सफल कहानी है। यह संयुक्त उद्यम दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों और पारस्परिक विश्वास को दर्शाता है।
शुरुआत में सत्तर हजार राइफलें तत्काल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात की गई थीं। लेकिन अब चरणबद्ध तरीके से पूर्ण स्वदेशीकरण की ओर बढ़ा जा रहा है। पहले चरण में केवल पांच प्रतिशत घटक भारत में बने दूसरे चरण में पंद्रह प्रतिशत तीसरे में तीस प्रतिशत चौथे में सत्तर प्रतिशत और पांचवें चरण में सौ प्रतिशत घटक भारत में निर्मित होंगे।
रक्षा मंत्रालय का लक्ष्य दो हजार सत्ताईस तक हथियारों में सत्तर प्रतिशत आत्मनिर्भरता हासिल करना और दो हजार उनतीस तक तीन लाख करोड़ रुपये का घरेलू रक्षा उत्पादन और पचास हजार करोड़ रुपये का निर्यात करना है। भारत जो कभी विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर बहुत अधिक निर्भर था अब स्वदेशी उत्पादन का एक उभरता हुआ केंद्र बन रहा है।
तकनीकी उत्कृष्टता और गुणवत्ता नियंत्रण

प्लांट में गुणवत्ता नियंत्रण को देश में सर्वश्रेष्ठ में से एक के रूप में विकसित किया जा रहा है। सभी परीक्षण अब स्वदेशी हो गए हैं जो भारत की तकनीकी क्षमता को दर्शाता है। राइफल में कलाश्निकोव असॉल्ट राइफलों के पारंपरिक फायदे हैं विश्वसनीयता और रखरखाव में आसानी।
इन राइफलों का उपयोग करने वाले सैनिकों और कमांडरों की प्रतिक्रिया बेहद सकारात्मक रही है। सभी ने हथियार से पूर्ण संतुष्टि व्यक्त की है। सेना की ओर से अब तक कोई शिकायत नहीं मिली है जो राइफलों की उत्कृष्ट प्रदर्शन क्षमता को प्रमाणित करता है। ये राइफलें सभी प्रकार के इलाकों में अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं चाहे वह रेगिस्तान हो पहाड़ी क्षेत्र हो या ठंडे मौसम वाले स्थान।
रक्षा उत्पादन में क्रांतिकारी बदलाव
अमेठी में इन राइफलों का निर्माण भारतीय रक्षा विनिर्माण क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण छलांग है। यह परियोजना न केवल सैनिकों को आधुनिक और विश्वसनीय हथियार प्रदान कर रही है बल्कि स्थानीय रोजगार के अवसर भी पैदा कर रही है। भारत का रक्षा क्षेत्र विदेशी आयात पर निर्भरता कम करने और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
मेक इन इंडिया पहल ने रक्षा निर्माण को अपने एजेंडे के केंद्र में रखा है। इसके परिणाम मापने योग्य हैं। स्वदेशी रक्षा उत्पादन में वृद्धि निर्यात में रिकॉर्ड वृद्धि और निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी भारत के रक्षा क्षेत्र के परिवर्तन को दर्शाती है।
धनुष आर्टिलरी गन सिस्टम एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम मेन बैटल टैंक अर्जुन लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस पनडुब्बियां फ्रिगेट्स कार्वेट और हाल ही में कमीशन किए गए आईएनएस विक्रांत जैसे प्रमुख रक्षा प्लेटफॉर्म विकसित किए गए हैं जो भारत के रक्षा क्षेत्र की बढ़ती क्षमताओं को दर्शाते हैं।
अमेठी में निर्मित ये आधुनिक राइफलें भारत को रक्षा आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के करीब ला रही हैं। यह परियोजना भारत को एक वैश्विक रक्षा निर्माता के रूप में स्थापित करने में मदद कर रही है और देश की सुरक्षा को मजबूत बना रही है। सीमाओं पर तैनात जवानों के हाथों में जब ये शक्तिशाली राइफलें होंगी तो भारत की रक्षा क्षमता और भी मजबूत हो जाएगी।
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