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भारत में ऑर्गेनिक खेती का बढ़ता चलन
भारत कृषि प्रधान देश है और सदियों से खेती यहाँ केवल रोज़गार का साधन ही नहीं बल्कि संस्कृति और परंपरा से भी जुड़ी रही है। हरित क्रांति के बाद भले ही खाद्यान्न उत्पादन में तेजी आई, लेकिन रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने मिट्टी, पानी और इंसानी स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव डाले। यही कारण है कि अब किसान बड़ी संख्या में ऑर्गेनिक खेती यानी जैविक कृषि की ओर रुख कर रहे हैं। यह बदलाव न सिर्फ उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद है, बल्कि किसानों की आय और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी अहम है।
क्यों ज़रूरी है ऑर्गेनिक खेती?
स्वास्थ्य की दृष्टि से –
रासायनिक खाद से उगाई गई सब्ज़ियां और फल लंबे समय में कैंसर, मधुमेह और हृदय रोग जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ाते हैं। इसके विपरीत, ऑर्गेनिक खेती से मिलने वाला भोजन प्राकृतिक, सुरक्षित और पौष्टिक होता है।पर्यावरण की दृष्टि से –
गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट और जैविक उर्वरकों से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और जल स्रोत प्रदूषण से बचते हैं।आर्थिक दृष्टि से –
बाजार में ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है और उपभोक्ता सामान्य फसलों की तुलना में 20–40% तक ज्यादा कीमत देने को तैयार रहते हैं।
ऑर्गेनिक खेती क्यों ज़रूरी है – विस्तृत जानकारी
भारत में स्थिति और उपलब्धियाँ
आज भारत दुनिया के सबसे बड़े ऑर्गेनिक उत्पादक देशों में गिना जाता है।
2016 में सिक्किम को देश का पहला “ऑर्गेनिक स्टेट” घोषित किया गया।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तराखंड जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर जैविक खेती हो रही है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 27 लाख से अधिक किसान ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन प्राप्त कर चुके हैं और उनके उत्पाद यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देशों तक निर्यात हो रहे हैं।
भारत सरकार का राष्ट्रीय जैविक कृषि कार्यक्रम (NPOP)
किसानों को फायदे और चुनौतियाँ
फायदे
बेहतर दाम – ऑर्गेनिक अनाज, सब्ज़ियां और फल सामान्य फसल से 20–40% अधिक दाम पर बिकते हैं।
निर्यात का अवसर – मसाले, चाय, कॉफी और दालों की अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारी मांग है।
भूमि की उर्वरता – प्राकृतिक खाद से मिट्टी लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहती है।
स्वास्थ्य लाभ – किसान खुद और उनके परिवार रसायन-मुक्त भोजन का सेवन कर सकते हैं।
चुनौतियाँ
शुरुआती दौर में उत्पादन घट सकता है।
सर्टिफिकेशन प्रक्रिया महंगी और समय लेने वाली है।
छोटे किसानों को मार्केट और खरीदार तक पहुँचने में कठिनाई होती है।
आगे की राह
सरकार ने परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) और राष्ट्रीय जैविक कृषि कार्यक्रम (NPOP) शुरू किए हैं, जिनसे किसानों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता मिल रही है।
डिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म किसानों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ सकते हैं।
यदि सर्टिफिकेशन प्रक्रिया को सरल और सस्ती बनाया जाए और युवा किसान आधुनिक तकनीक का उपयोग करें, तो भारत में ऑर्गेनिक खेती एक जैविक क्रांति का रूप ले सकती है।
परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) – कृषि मंत्रालय
भारत में ऑर्गेनिक खेती अब विकल्प नहीं बल्कि समय की आवश्यकता है। यह स्वास्थ्य, पर्यावरण और किसानों की आर्थिक स्थिति—तीनों के लिए लाभकारी है। यदि सरकार, किसान और उपभोक्ता मिलकर प्रयास करें, तो आने वाले वर्षों में भारत दुनिया का सबसे बड़ा ऑर्गेनिक उत्पादक और निर्यातक देश बन सकता है।
ऑर्गेनिक खेतीभारतजैविक कृषिकिसानों की आयरसायन-मुक्त खेती